मुझे आस हैं, कि कर्म पलटी खायेंगे...
अपने भाग्य में भी, वो सूरज की किरणें फेलायेंगे।
होगा उजियारा, मंद पड़े इस जीवन में...
हम भी ओरों की भांति, खिलखिलायेंगे।
आज भले ही घटा छाई हो, अंधकार की...
बाजेगी छनछन, मधुर-सी किसी फनकार की।
मुझे पहुंचना हैं मंजिल तक, मैं रुकूंगा नही...
तुम दबा लो कितना भी, मैं झुकूंगा नही।
मुझे उम्मीद है, चांद की रोशनी फैलेगी जीवन में...
क्यों मैं नीर बहाहुँ, इस मामूली से अल्पकाल में।
तुम कोसों मुझे, या दो तरह-तरह की यातना...
मैं गिरकर उठूंगा, तुम रास्ते भले; लाखों काटना।
थक जाओगे तोड़ने में, उसकी लीला को...
जोड़ लो हाथ, मान लो उसकी झनकार को।
मुझे आस हैं, कि कर्म पलटी खायेंगे...
अपने भाग्य में भी, वो सूरज की किरणें फेलायेंगे।
©संजय ग्वाला
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