ऐ मेरे रहनुमा, कुछ तो बोल दो...
तरस खाकर मेरे ऊपर, अपने घर के दरवाजे खोल दो।
एहसान होगा तेरा, इस गरीब बन्दे पर...
पलट कर इसके कर्म, सही रास्ते पर मोड़ दो।

ऐ मेरे रहनुमा, कुछ तो बोल दो...

यह तुम्हें ही अपना, सबकुछ मानता हैं...
बिन तुम्हरे, कुछ न जानता हैं।
ठोकरें; इसने बहुत खाई है जीवन में...
कुछ जख्म भरकर, इस हीरे को तराश दो।

ऐ मेरे रहनुमा, कुछ तो बोल दो...

दरबदर भटक कर उलझ गया हूं...
अश्क़ बहते हैं पर...
तुम अपना फ़रमान सुना दो।

ऐ मेरे रहनुमा, कुछ तो बोल दो...

©संजय ग्वाला