पढ़ना हैं मुझकों...
कुछ गढ़ना हैं मुझकों।
इन बेरहम जख्मों से...
लड़ना हैं मुझकों।
क्यों मैं हार कर हताश होऊ...
कदमों से कदम मिलाकर,
आगे बढ़ना हैं मुझकों।
वो थाम; कर कलम मेरी...
रोक रहा हैं मुझकों।
दिखाकर लाल सुर्ख आंखें...
बहला रहा हैं मुझकों।
कह रहा हूं उससे मैं...
ना डराया कर तू मुझकों।
पंछी हूं मैं नीले गगन का...
ना पिंजरे में बांध तू।
फैला कर पंख अपने...
उड़ना हैं बुलंदियों तक मुझकों।
पढ़ना हैं मुझकों...
कुछ गढ़ना हैं मुझकों।।
©संजय ग्वाला
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