फटा चोगा, मुरझाईं आंखें
जले हाथ, पैरों में ऐंठन
दबी जुबां...
पीठ पर, कोड़ो के निशां
तपन में, नंगा बदन लिए
बिलख रहा, बिन आंसू के
ज़ुल्म सहता, भूखा सोता
करो के नीचे दबा...
एकांत में, चुपके से रोता
पिता की रूह पर, घावों को देखकर
कौन बोले, हमें कुछ खाना हैं
चला कुदाली, लिए कन्धे पर
खोद रहा, सुखी माटी
भीगा बदन लिए पसीने से
लथपथ, अम्बर ताक रहा
पकड़, हिलये को
बो रहा, धार वक़्त की
ना लगे, हाथ कुछ तो
लगता नही, वो हाथ किसी के
दशा एक सी, हैं सभी की
काट रहे बस, जीवन को
ना देख रहा, इन्हें कोई
मुफलिसी के, इस दामन में
To be continued...
©संजय ग्वाला
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