जीवन में जब आप कोई ऐसा काम करते हैं जिससे किसी के प्राण बचें तो इससे ज्यादा आप खुशनसीब या खुशकिस्मत नही हो सकते! हमारे द्वारा भी कल शाम को कुछ ऐसा ही हुआ जो मरणासन्न तक याद रहेगा... मैं यहां अपने द्वारा किये गए ऐसे किसी कार्य का महिमामंडन करने के लिए नही बल्कि समाज में दफ़न जिंदा मुर्दों को उठाने के लिए एक आवाज़ मात्र लगाने हेतु ऐसा कर रहा हूं! क्योंकि आज जो मैंने देखा, समझा... उससे मैं हताश हूं।

खबरों में रहने व लाइमलाइट के लिए तो हर कोई नेक कार्य की पूंछ पकड़ कर भलाई का ढिंढोरा पिटवा सकता हैं व पिटवाते भी हैं; जैसा कि आजकल आप लॉकडाउन में गरीबों की भलाई के संदर्भ में देखते ही होंगे!

कल शाम की घटना ने मेरे अंदर एक नई सोच, पहल, पहलू व डर को पैदा कर दिया हैं, जो विनाशक भी हैं, घातक भी हैं और कुछ अर्थात् में संजीवनी भी!

विनाशक; ऐसे की अकेले का आज कोई सहारा नही बन रहा हैं, सब अपने सपनों का घड़ा भरने के लिए जी रहें हैं... लेकिन शायद वो भूल रहें हैं कि सपनों के घड़े के चक्कर में कही कर्मों के घड़े से हाथ ना धो बैठें। घातक इसलिए कि; अभी तुम दूसरों पर आई विपदा को नजरअंदाज कर घर में दुबक कर बैठ रहें हों, कहीं ऐसा न हो कि यह घड़ी खुद पर आ जाये और आपकी मदद के लिए कोई हाथ दिखाई ना दे! संजीवनी मेरे लिए; जिसने मुझें कल की घटना को देखकर कुछ नए कार्य व संकल्प करने के लिए प्रेरित करने का मौका दिया! जिससे शायद अब मैं उनके लिए कुछ हितकारी प्रयत्न कर पाऊं।

मैं यहां बात कर रहा हूं मोर के बारे में, जी हां मोर... m-o-r-e वाला मोर नही... राष्ट्रीय पक्षी मोर, जो उड़ता हैं, मधुर आवाज का प्रसारण करता हैं, जिसे अंग्रेजी मीडियम वाले पीकॉक कहते हैं... नासमझों की भाषा में मोटी-मोटी पांखों वाला; जिसकी पांखों को आप रुपयों में चार के हिसाब से बेचते हो या बेचा करते थे!

कल शाम को लगभग 7:30 के आसपास मैं अपने घर की छत पर खड़ा होकर बगल के मकां के मित्र प्रदीप से बातें कर रहा था! इतने में एक बंदर दौड़ता हुआ आया और मेरे घर के पीछ बनेे एक सेलफोन के टॉवर पर चढ़ गया; जिस पर पिछले कई वर्षों से 40-50 मोरों का झुंड रोजाना बैठा करता हैं, इससे मोरों में हड़बड़ाहट हो गई और वो सब इधर-उधर भागने लगें, इसी बीच एक मोर पास के बाड़े में उतर गया, जो माननीय सरपंच साहब के मकां के बिल्कुल पीछे ही हैं... जहां कुछ कुत्ते घात लगाकर ही बैठे थे और उतरे मोर को दबोच लिया... हम जो यह देख रहे थे, फ़ौरन हरकत में आये और छत पर से ही उन्हें ईंट-पत्थरों व चिल्लाने की आवाज़ से भागने की कोशिशें करने लगे, पर वो उसे छोड़ने को तैयार ही नहीं... झपटमारी में मोर की दर्दनाक व पीड़ादायक चीखें निकलने लगी, जिससे किसी का भी ह्रदय विचलित हो जाये... यह सब हमसे ना सहन हुआ और प्रदीप सीढ़ियों से छत से नीचे आने के लिए चला गया और मैंने कोई परवाह किए बिना, छत से दीवार और दीवार से जमीन पर कूदकर, दूसरे से तीसरे बाड़े में तब तक हम दोनों पहुंच गए और उनके चंगुल से मोर को छुड़ाया लेकिन तबतक उसकी लगभग 80% पंखों को कुत्तों ने नोच-नोच कर निकाल लिया परन्तु ग़नीमत की बात यह रही कि मोर को और कहीं घाव नही हुआ और उसकी जान बच गई।

जान बचने के बाद वो एक कोने में दुबक कर बैठ गया... शायद अचानक हुई इस घटना से वो सहम व डर गया था।

अब हमारे सामने यह दिक्कत हो गई थी कि इसे कहा सुरक्षित स्थान पर रखें!

इसके बाद जो हुआ... वही महत्वपूर्ण हैं।

1. एक मित्र को दो-तीन बार कॉल किया परन्तु वो खाना खा व चबा रहा था!

2. सरपंच साहब को घटना बताई! उस वक़्त शायद वो सोने की तैयारी कर रहे थे, जगह की बात की तो अनु-उपलब्धता जताई और मैंने ज्यादा कुछ कहा नही!

3. अन्य मित्र को इलाज के लिए कॉल किया, उसने हमें ही डॉक्टर बना दिया और कह दिया कि इसे पेरासिटामोल की गोली गोल कर पिला दो... शायद डॉक्टर मित्र हमारा, हमसें उसका जुकाम सही करवा रहा था!

4. बातों-बातों में हमनें मोर को प्राथमिक विद्यालय के पास बने पूर्व पंचायत भवन, नए पंचायत भवन और माध्यमिक विद्यालय इत्यादि में रखने के बेबुनियादीे ख़्यालात पैदा किये!

अंत में थक हार कर, भाई ज्ञान के घर पर मोर को रखा।

कुछ सवाल, जिनके जवाब जरूरी हैं...

1. क्या गांव में एक अलग आवास छोटे पंछियों के लिए नही होना चाहिए? ताकि घायल अवस्था में उन्हें अस्थाई निवास उपलब्ध हो सकें!

2. गांव में इतने सारे खंडर(अलग-अलग सरकारी भवन) खड़े कर दिए... क्या उनका सदुपयोग नही होना चाहिए?

3. क्या गांव के पशु चिकित्सक की जवाबदेही तय नहीं होनी चाहिए?

4. और जो आसपड़ोस के मेरे जोर-जोर से चिल्लाने पर भी, घर से बाहर नहीं निकले! ऐसो को डूब कर मर नही जाना चाहिए?

5. क्या एक ऐसा रोडमैप नही होना चाहिए कि गांव सम्बन्धी कोई आपदा या जरूरत पड़ने पर, किसी भी सरकारी भवन को बेझिझक उपलब्ध करवाया जा सकें?

- एक बेसहारा जीव के प्रति लोगों की ऐसी सोच से, मैं निराश भी हूं और परेशान भी; कारण... कुत्तों से गियेबिते; अब इंसान हो रहे हैं!

- यह ओरिजनल फ़ोटो नही है, गुगल से लिया गया हैं।👏