क्यों गांधी के सामने झुक गए अम्बेडकर? और किसके अनशन से मजबूर होकर डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने कर दिए थे समझौते पर हस्ताक्षर!

साथ ही आपको बताएंगे गांधी व अंबेडकर के मध्य टकराव की पूरी दास्तां...

आज हम बात करने वाले हैं सांप्रदायिक पंचाट व पूना पैक्ट की... जिसे पूना समझौता भी कहा जाता है।

आप सब जानते होंगे कि भारत पर राज करने की एक ही नीति हमेशा अपनाई गई है... और वो है फूट डालो, राज करो ।

अंग्रेजों ने इसी नीति से शासन करते हुए, तत्कालीन भारत के बहुसंख्यक हिन्दुओ और अल्पसंख्यक अन्य समुदायों को, 1909 के, भारत परिषद अधिनियम द्वारा, विभाजित करने के लिए, सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली शुरू की...

जिसके तहत सबसे पहले, भारत में मुस्लिमों को मतदान का अधिकार दिया... इसके बाद सुधार के नाम पर, कई कानून आए और सांप्रदायिक खाई को और गहरा करते हुए, धर्म के नाम पर लोगों को, आपस में लड़वा दिया।

इन सब से, तत्कालीन क्रांतिकारी नेताओं को, गहरा आघात पहुंचा और उन्होंने इसे उभरते हुए लोकतंत्र की हत्या करार दिया।

भारतीय नेताओं के उस वक्त के, अम्बरेला संगठन कांग्रेस ने, सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली व अन्य कानूनों को लेकर, अपना विरोध पुरजोर तरीके से, दर्ज कराना शुरू कर दिया, जिसके कारण, अंग्रेजों को, गोलमेज सम्मेलन यानी राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का आयोजन करना पड़ा ताकि बातचीत द्वारा, मध्य का रास्ता निकाला जाए।

पहले गोलमेज सम्मेलन का आयोजन लंदन में 1930 को हुआ जिसमें डॉ भीमराव अंबेडकर ने भाग लिया था लेकिन कांग्रेस की ओर से भाग नही लेने पर, मार्च 1931 को गांधी-इरविन समझौता हुआ... जिसमें महात्मा गांधी ने मांग रखी कि, जो राजनैतिक बंदि है उन्हें छोड़ा जाए और बदले में , अंग्रेजों ने गांधी से, दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने को कहा...

1931 के, दूसरे गोलमेज सम्मेलन में, दलितों के प्रतिनिधि के तौर पर, डॉक्टर अंबेडकर ने... दलितों के लिए तर्क देकर कहा कि, दलित हिंदुओं का भाग नहीं है, वो भी अन्य समुदायों... मुस्लिम, ईसाई व सिखों की तरह, अलग समुदाय हैं। इसलिए इन्हें भी, अलग सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली में, हिस्सा देने की मांग रखी लेकिन गांधी ने यह कहकर कि दलित हिंदुओ का भाग है, इसका विरोध किया और अंबेडकर से मतभेद के कारण, सम्मेलन बीच में छोड़ कर भारत लौट आए।

जहां उन्हें आते ही पुणे की येरवडा जेल में डाल दिया गया तथा फूट डालो राज करो की, नीति के तहत, 16 अगस्त 1932 को, सांप्रदायिक पंचाट यानी कम्यूनल अवार्ड की घोषणा कर दी...

कम्युनल अवार्ड का मतलब सरल शब्दों में दलितों व अल्पसंख्यकों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था से है।

कम्युनल अवार्ड के विरोध में, गांधी ने जेल में, आमरण अनशन शुरू कर दिया... जिसके कारण दिन बे दिन उनकी हालत बिगड़ने लगी और उस वक्त के अन्य नेताओं के दबाव में, मज़बूरन डॉ भीमराव अंबेडकर को, दलित हिंदुओ का ही भाग है, मानना पड़ा।

24 सितंबर 1932 को, डॉ राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में, गांधी व अंबेडकर के मध्य, समझौता हुआ, जिसे पूना पैक्ट हैं।

समझौते में, गांधी ने दलितों के उत्थान के लिए, कुछ करने का वादा किया, जिसके बाद, अंबेडकर... अलग निर्वाचन व्यवस्था को, छोड़ने के लिए राजी हुए।

इस समझौते के कुछ समय बाद डॉ. आंबेडकर गांधी व कोंग्रेस से काफी नाराज हुए और उन्होंने कहा कि, “पूना पैकट में दलितों के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है.”

बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर उन लोगों में से है जिन्होंने तीनों गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था