आज एक बार पुनः रामानंद सागर जी की रामायण का आखिरी अध्याय देखने का मौका मिला... जिसमें पवित्रता एक प्रमुख मुद्दा रहा!

मेरे मन-मस्तिष्क में काफी देर से यह सवाल दौड़ रहा है, इसलिए लिख रहा हूं कि "आखिर आज के समय में पवित्र कौन हैं?"

- यह सवाल दूसरो से ना पूछकर खुद से इसका जवाब तलासने की कोशिश कर रहा हूं।

1. स्पष्ट शब्दों में कहूं या लिखूं तो, मैं इस विमर्श में हूं कि 'क्या एक पुरूष के रूप में, मैं पवित्र माना जा सकता हूं?'

2. क्या एक मानव के रूप में, मैं सांसारिक जीवन के बंधनों का सही ढंग से पालन कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा हूं?

3. क्या किसी पराई स्त्री के प्रति अपने दृष्टिकोण को सही राह पर रख पा रहा हूं?

4. क्या अपने अंतर्मन से मैं किसी पराई नारी के प्रति अपनी सोच को स्वालंबी व कर्तव्यपरायणता युक्त रखने में सफल हूं या रहा हूं?

सवाल बहुत सारे हैं और जवाबों की फेहरिस्त काफी छोटी!

- असमन्जस में हूं कि आखिर कैसे व किस पैमाने पर खूद को रखूं!

1. एक मानव के रूप में, अपनी काम इन्द्रियों को बांधे रखना आज के समय में बड़ा कठिन कार्य हैं, जब आपके सामने नग्नता व अश्लीलता हर वक़्त परोसी जाती हैं!

2. एकाग्रता व सदविचार का मन में स्थास्थित्वे बनाये रखना बलिष्ठ कार्य हो गया हैं!

3. आज जब अंग को ढकने के नाम पर वस्त्र काम उतेजना को बढ़ाने वाले अस्त्र शस्त्र हो चुके हैं तब सोच को सदाचार की ओर स्थान दिलाना तपस्या समान हो चुका हैं!

- तब कैसे व किस प्रमाण पर मैं कहूं कि मैं पवित्रता युक्त पुरूष हूं?

1. मैं यह कह सकता हूं कि मैंने किसी पराई स्त्री को छुआ तक नहीं हैं परन्तु भाव-विभोर ने घर तो मेरे अंदर भी किया होगा!

2. मैं यह कह सकता हूं कि मेरी नज़रों ने हमेशा लाज-लज्जा व सददृष्टि से भोग किया है परन्तु इन्द्रियों का उन पर प्रभाव न रहा हो! ऐसे कैसे हो सकता हैं?

3. मैं यह कह सकता हूं कि मैंने वाक्-वाणी में भी मर्यादा को उत्तम स्थान दिया हैं परन्तु मर्यादा पर समाज का प्रभाव ने पड़ा हो! कैसे हो सकता हैं?

4. मैं यह कह सकता हूं कि मैंने इन्द्रियों पर से अनियंत्रण के लिए क्षमा याचना की है परंतु पराये-धन का भोग रस पीने के पश्चात, यह स्वीकार्य कैसे हो सकती हैं?

5. मैं यह कह सकता हूं कि यह कलयुग हैं, यहां शुद्धता के संग सर्व कर्म निहित हैं परन्तु ग्रहणता के उपरांत त्याग न्यायहित कैसे हो सकता हैं?

अतः अंतर्मन से भोग-विलासा से ग्रसित पुरूष पवित्र कैसे हो सकता हैं!

इसी के साथ मुझे भी अपना उत्तर मिला! शुक्रिया।

©संजय ग्वाला