आज हम सेक्स एजुकेशन व सेक्सुअल प्रॉब्लम्स को लेकर बात करने वाले हैं कि लोग इन मुद्दों पर हमारे देश में खुलकर बात क्यों नहीं कर पाते हैं... ओर कौनसे कारण है जो हमें इस गंभीर विषय से दूर धेकेल रहे हैं।

जैसा कि हम सब को पता है कि हमारे देश की यह संस्कृति रही हैं कि सेक्स रिलेटेड लगभग हर एक टॉपिक को अशोभनीय माना जाता हैं और ऐसी बातों को करने वाले व्यक्तियों को अनैतिक आचरण वाला करार दे दिया जाता हैं लेकिन आज के समय की यह जरूरत है कि हम इन मुद्दों पर भी बाकी मुद्दों की तरह ही निसंकोच विचार - विमर्श करें तथा एक जागरूकता का मोहाल तैयार करें।

आज सेक्स के मुद्दों पर हम इतना गहरा पर्दा डाल कर बैठे हैं कि अपने छोटे बच्चों को गुड टच - बेड टच, सेक्सुअल अस्सुअल्ट व सेक्सुअल एब्यूज जैसे महत्वपूर्ण विषय से रूबरू नही करवाते हैं और उन्हें अधर में लटकाये रखते है, जो उनके मस्तिष्क पर मानसिक व शारिरिक कुप्रभाव पैदा करते हैं जिसके हक़दार हम व हमारी सरकार की शिक्षण व्यवस्था है जिसमें शारिरिक बनावट व सरंचना की पाठ्य सामग्री आते ही उसे अनदेखा कर नया पृष्ठ खोल लेते हैं जो कि घोर आपराधिकता हैं। इसी कारण आगे चलकर यह बच्चे सेक्स लाइफ की समस्याओं का समय पर निस्तारण नही कर पाते और गंभीर रोगों के मकड़जाल में फस जाते हैं।

21वीं सदी की यह आवश्यकता है कि हम रूढ़िवादी परम्पराओं को त्यागते हुए सेक्स शिक्षा को सामान्य वार्तालाप प्रक्रिया में शामिल करें तथा शर्मिंदगी व अश्लीलता को नकारें ताकि भारत में सेक्स और सेक्सुअलिटी जैसे मुद्दों पर एक सुरक्षित वातावरण तैयार हो सकें।

साथ ही हमारे समाज व देश को सेक्स एजुकेशन, यौन हिंसा ओर शोषण जागरूकता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक व्यापक व अनिवार्य कामुकता शिक्षा या मॉड्यूल की आवश्यकता है।

2005 में एडोलसेंट एजुकेशन प्रोग्राम भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया था लेकिन अध्यापक, बच्चों के माता पिता व नीति निर्माताओं ने इस पर आपत्ति जता दी थी जिसके कारण 2007 में यह प्रोग्राम प्रतिबंधित कर दी गया!

अब वक्त की यह मांग है कि ऐसे प्रोग्रामों को पुनः चलाया जाए ताकि शरीर व उम्र में होने वाले परिवर्तनों व यौन शिक्षा को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिल सकें।

©संजय ग्वाला