आज हम डिप्रेशन से परेशान एक व्यक्ति के मन मे क्या ख्यालात आते हैं ओर वो सुसाइड जैसे कदम आखिर क्यों उठाता है, इस पर बात करेंगे... किसी के सपनों का मर जाना, अकेले को सहारा न मिलना... घुटकर जीवन जीना, टूटकर हार जाना और आखिर में मौत को गले लगा लेना... यह डिप्रेशन की कहानी का अंत नही हैं, बल्कि अपनों के साथ का अंत हैं, जो उन्हें, समय पर नही मिल पाता हैं... जिसकी सबसे ज्यादा उस वक़्त उन्हें जरूरत होती हैं।

मौजूदा दौर में बतलाने पर "ठीक है या मौज में है" कहने वाला हर शख्स 'कहे' अनुसार नही होता है, उसके मन-मस्तिष्क में कई सवाल व जवाब गर कर रहे होते हैं... जिसके लिए; वो किसी ऐसे सख्स का साथ चाहता है जो उसे समझ सकें, उसके मन के भावों को पढ़ सकें, उसे दिलासा दे सकें, उसके कंधे पर सर रखकर रो सकें और ऐसे आदमी की कमी ही मौत का फंदा पूरा करता है... जो उसे हर वक़्त पुकार रहा होता है और ना चाहते हुए भी आखिर में उसको उसे गले लगाना पड़ता हैं, जब उम्मीद की कोई किरण नज़र ना आती हो...

सुसाइड करने वाला हर शख्स, ख़यालो में जी रहा होता हैं, अपने मन मुताबिक दुनिया बसाना चाहता है... उसकी विफलता ही उसे ऐसे कदम उठाने पर मजबूर कर देती हैं! वरना एक खाता पीता नोजवान ऐसे नही मर रहा होता हैं।... वो भी जीना चाहता हैं, अपनो के संग हँसना चाहता है और दोस्तों के साथ जीवन का आनंद लेना चाहता है लेकिन अकेलापन व तन्हाई सब कुछ छीन कर ले जाती है... सिवाय यादों के!

इसलिए, हम किसी शख्स के चेहरे को देखकर कभी नही जान सकते कि वो अंदर ही अंदर किस दर्द से गुजर रहा है... और जीते हुए भी कैसे मर रहा है!

©संजय ग्वाला